मै पहले भी दो बार जा हरिद्वार की यात्रा कर चुका हूँ लेकिन दोनो ही बार मै हरिद्वार नहीं घूम पाया और ना ही मंसा देवी और चंडी देवी के दर्शन ही कर पाया। इस बार सोचा कि हरिद्वार और ऋषिकेश ही घूमना है। सभी दोस्तों से बात हुई कि हरिद्वार जाना है जैसा कि हर बार होता है कि सबकी अपनी अपनी योजनाएं होती है लेकिन हर बार से हम सबक ले चुके थे तो अब हमारा सिद्धांत होता है कि अपनी योजना सबको बताते समय ये भी बता देते है कि हमारा जाना निश्चित है वर्ना मित्र लोग रोकते है कि समय मिलने पर साथ चलेंगे। हमारी जाने की योजना होली के पहले की थी। हम हमेशा होली के पहले या बाद में जाते है।
मार्च के महीने मे हमारे पास काफी खाली समय होता है जिसमें हम बगैर तनाव के घूम लेते है। होली का त्योहार हम अपने घर में ही मनाना पसंद करते है। साथ चलने के लिए कोई मित्र त्यौहार के पूर्व व्यापार में व्यस्तता होने के कारण तैयार न हो पाया।
हरिद्वार के बारें में पूरी जानकारी के लिए यंहा क्लिक करें
इधर काफी दिनों से हमारी बहन भी शिकायत कर रही थी कि हमें पर्यटन नहीं कराते हो। फिर हमने बहन से कहा कि हरिद्वार की यात्रा पर जाना है तो वो तैयार हो गयी। उसी दिन संगम एक्सप्रेस ट्रैन की टिकट भी जनरल कोटे के तहत आरक्षित हो गयी हालांकि यह ट्रैन सामान्य से ज्यादा समय लेती है लेकिन कंफर्म टिकट होने के कारण हमने इसी से यात्र करना उचित समझा। शाम को हमारी ट्रैन कानपुर से थी जंहा हम समय से पहुंच गये। सुबह हम हरिद्वार में थे।


कमल मंदिर की यात्रा के बारें में पढे
हरिद्वार पहुंचते ही हम सीधे वंहा के प्रमुख स्थल हर की पौडी पहुंचे। दोपहर के लगभग दो बज रहे थे तो हर की पौडी में स्नान के बजाय होटल में ही स्नान किया। थोड़ी देर विश्राम करने के पश्चात हम हरिद्वार के प्रमुख मंदिर चंडी देेवी और मंसा देवी के दृश्न के लिए निकले। सबसे पहले चंडी देवी मंदिर के अधिकृत रोपवे बुकिंग काउंटर पर पहुंच कर वहीं से दोनो मंदिरो की रोपवे की संयुक्त टिकट ली। अगर आपको दोनों मंदिरो के दर्शन रोपवे द्वारा ही करने है तो आपको संयुक्त टिकट लेनी चाहिए जिससे समय बचने के साथ ही यह सुविधाजनक और सस्ता होगा। फिर रोपवे द्वारा चंडी माता के दृश्न करने के पश्चात मंशा देवी मंदिर प्रशासन की बस द्वारा पहुंचे।






काफी देर होने के कारण मंदिर कुछ ही समय में बंद होने वाला था जिसके कारण भीड़ काफी कम थी। आराम से दृश्न करके हम हर की पौडी मां गंगा की आरती देखने के लिए जल्द ही वंहा से निकल पड़े।
जब हम पहुंचे तो वंहा की आरती समाप्त हो चुकी थी। हरिद्वार में भारत माता का एक मंदिर है जो काफी भव्य और प्रसिद्ध है हम आटो द्वारा वंहा पहुंचे पर जैसा हमें भय था वह मंदिर भी अपने नियत समय पर बंद हो चुका था। फिर उसी आटो वाले से रास्ते में पडने वाले प्रमुख मंदिरो के दर्शन करते हुए वापसी तय की।
लाल किला की यात्रा के बारें में पढे
वापसी में सबसे पहले पवन धाम मंदिर पहुंचे। इस मंदिर को कांच का मंदिर या शीश महल भी कहते है। इस मंदिर में नाम के अनुसार कांच का बारीक काम किया गया है जिसमें कांच के सादे और रंगीन टुकडों से कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए चित्र भी है जो काफी मनमोहक है। इसके बाद एक मंदिर और था जिसका नाम मुझे वैष्णों माता मंदिर है। यह मंदिर अभी भी निर्माणाधीन्वार है। इस मंदिर में विभिन्न पौराणिक घटनाओं को प्रदर्शित करती हुई मूर्तियां है। साथ ही विभिन्न तीर्थ स्थलों की प्रतिमाओं की अनुकृति भी यंहा मौजूद है। अन्य कई आश्रम और मंदिर घूमते हुए लगभग ८:३० बजे तक हर की पौडी पहुंचे। इसके उपरांत यंहा से थोड़ी दूरी पर होशियारपुरी रेस्टोरेंट में जाकर भोजन किया। भोजन कीमत के अनुसार अच्छी गुणवत्ता का था।




भोजन करने के उपरांत हम वंहा के स्थानीय बाजार में खरीदारी करने के लिए निकल पडे। मै बाहर खरीदारी तभी करता हूं जब कोई नई या यूनिक चीज दिखे जो अपने यंहा की बाजारों में उपलब्ध न हो। यंहा पूजा पाठ से संबंधित, कपड़े और अन्य वस्तुओं की अच्छी बाजार है। आज आज काफी पैदल चल लिए थे जिसकी वजह से थकान हम पर हावी हो रही थी जिसकी कारण हम होटल पहूंच कर शीघ्र ही सो गये।हरिद्वार की यात्रा की अगली पोस्ट में चर्चा होगी हर की पौडी घाट यात्रा के बारे में



Pingback: हर की पौड़ी और ऋषिकेश की यात्रा