यात्रा में सिर्फ दो लोग थे हम और हमारे बडे भाई जिनका नाम शिवाजी गुप्ता है। यात्रा में हमारा पहला पड़ाव था लोटस टेम्पल यानि कमल मंदिर। यह एक शानदार संरचना है जोकि बहाई समुदाय द्वारा बनाई गई है। इस मंदिर की खास बात यंहा किसी प्रकार की मूर्ति का न होना और किसी भी प्रकार की विशेष पूजा पद्धति का ना होना । यंहा जाकर आपको सिर्फ ध्यान लगाना है अब यह ध्यान आप किस प्रकार का लगाते है या किस प्रभु का ध्यान करते है यह आपके ऊपर है। मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार की बातचीत की सख्त मनाही है जिससे वंहा शांति कायम रह सके और लोगो का ध्यान ना भंग हो। अंदर जाने के लिए किसी भी प्रकार के टिकट की आवश्यकता नही है।
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मंदिर की संरचना बहुत ही खूबसूरत और अद्वितीय है। ऊपर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कोई कमल जिसकी पंखुड़ियाँ खुली हो पानी पर तैर रहा है। पूरा ढाँचा सफेद संगमरमर का बना है। दरवाज़े और अन्य फर्नीचर मे भी लकड़ी का अच्छा काम किया गया है। इस मंदिर के चारों और तालाब है जिसकी वजह से ही यह मंदिर पानी मे तैरते हुए कमल की भांति प्रतीत होता है।
मंदिर के चारो और हरियाली और बाग है जिससे मंदिर को और भव्यता मिलती है। मंदिर काफी विस्तार से बना है जिसमें मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर आपको बाग से गुजर कर तालाब को पुल द्वारा पार करके मंदिर में जाया जा सकता है।
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मंदिर के संस्थापक को और उनकी दार्शनिक सोच को नमन जो उन्होनें समाज को यह अनुपम भेंट प्रदान की जंहा कोई भी व्यक्ति जा सकता है चाहे वो जिस धर्म का हो वास्तव में ऐसी जगह जाकर ही कभी कभी हम अपने धर्म से भी ऊपर उठकर खुले दिमाग से सोच पाते है धार्मिक बातों को। साथ ही इसके रचनाकार को भी नमन जिन्होंने इस संरचना को सबके सामने प्रस्तुत किया।
ऐसी जगहों पर जाने के पूर्व अगर इनकी जानकारी पहले से ले ली जाए तो हम इनका अवलोकन अच्छे से कर सकते है ऐसा मुझे लगता है। भविष्य में किसी जगह जाने से पूर्व अब में वंहा के विषय मे कुछ जानकारी पहले से भी जुटा लिया करूंगा। आप इस मंदिर के बारे में अधिक जानकारी यंहा प्राप्त कर सकते है.
इसके उपरांत भी हमारी यात्रा जारी रही जिसकी चर्चा अगले पोस्ट में







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